ভারতের প্রতিটি উৎসবের মূল যদি অনুসন্ধান করা হয় দেখা যায় তার
বেশিরভাগ হচ্ছে বৌদ্ধ ধম্মের সঙ্গে যুক্ত ও কিছু উৎসব মূলনিবাসীদের ইতিহাসকে বিকৃত করে ব্রাহ্মণ্যবাদী
ব্যবস্থার অনূকূলে কাল্পনিক কাহিনির প্রয়োগে গড়ে উঠেছে। দেখন অক্ষয় তৃতীয়ার আসল সূত্র-
যেটাকে ব্রাহ্মণয়বাদী ব্যবস্থায় কাল্পনিক কাহিনি জুড়ে করা হয়েছে।
অক্ষয় তৃতীয়া মানে অখাজি এটি আসলে “বপ্পমঙ্গল বৌদ্ধ উৎসব”
अक्षय तृतीया मतलब अखाजी यह वास्तव में "वप्पमंगल बौद्ध उत्सव" है|
লেখক-- ডঃ প্রতাপ চাটসে(Pratap Chatse) বৌদ্ধ আন্তর্জাতিক নেটওয়ার্কhttps://www.facebook.com/pratap.chatse.9/posts/1451606055336245?__cft__[0]=AZU_9EAd716ILvgLJMssPavDZaxbHs7Cl57at0f-td9d0CtxWqhpCNwPwzIh2jdxAhUNBJo33mGnfps_gYcFI8YKg-RwSlwe1KadVe-8bUWGpGxo2C9YHdKu6FrZ5x7uzd3um_Lx79ooVek91efAmh1tJP-pPJGMWPyzbw2qpGT-5g&__tn__=%2CO%2CP-R
অখাজি
মানে অক্ষয় তৃতীয়া একটি বৌদ্ধ উৎসব। অখাজি বা বপ্পমঙ্গল
উৎসব হল ভারতের মহান সিন্ধু প্রাক-বৌদ্ধ সভ্যতার একটি কৃষি উৎসব। পালি সাহিত্যে
একে বপ্পমঙ্গল উৎসব বলা হয়। বছরের প্রথম ফসলের জন্য মাঠ
প্রস্তুত করতে এই দিনে প্রথম লাঙ্গল চালানো একটি প্রাচীন ঐতিহ্য। আমাদের
পূর্বপুরুষরা এর জন্য একটি দিন নির্ধারণ করেছিলেন, একে অখাজি বলা হয়।
তথাগত
বুদ্ধের পিতা শুদ্ধোদন তাঁর পাঁচশত লাঙ্গল দিয়ে এই উৎসব পালন করতেন এবং রাজা
হয়েও প্রথম লাঙ্গল চালিয়ে এই কৃষি উৎসব শুরু করেছিলেন। তথাগত বুদ্ধ, শৈশবে, এই উৎসবের দিনে
জাম্বু গাছের নীচে বসেছিলেন, নির্জনে, তিনি ধ্যানের প্রথম শিখর অর্জন করেছিলেন, যা তিনি বোধগয়ার পিপল গাছের নীচে বুদ্ধত্ব লাভ করতেন।
তাই
এই দিনটি বৌদ্ধ ধম্মে অত্যন্ত গুরুত্বপূর্ণ। বপ্পমঙ্গল উত্সবটি তথাগত বুদ্ধকে অশেষ “অক্ষয়
ত্রিবিধ জ্ঞান” অর্জনে সহায়তা করার জন্য সহায়ক ছিল। এই
কারণে, বৌদ্ধরা এখনও অক্ষয়
তৃতীয়া বা আখাজি হিসাবে বপ্পমঙ্গল উৎসব পালন করে। পরশুরাম একটি কাল্পনিক চরিত্র
এবং এই চরিত্রটি বপ্পমঙ্গলের বৌদ্ধ উত্সবকে ব্রাহ্মণীকরণ করার জন্য অক্ষয়
তৃতীয়ার নামে এই উত্সবের সাথে যুক্ত। কল্পকাহিনীগুলি প্রত্যাখ্যান করা হলে, এটি প্রকাশ পায় যে অক্ষয় তৃতীয়া বা আখাজি আসলে বৌদ্ধ
উৎসব বপ্পমঙ্গল।
-- ডঃ প্রতাপ চাটসে, বৌদ্ধ আন্তর্জাতিক নেটওয়ার্ক
अक्षय तृतीया मतलब अखाजी यह वास्तव में "वप्पमंगल बौद्ध उत्सव" है|
अखाजी अर्थात अक्षय तृतीया एक बौद्ध पर्व है। अखाजी अर्थात वप्पमंगल उत्सव भारत की महान सिंधुकालीन प्राक बौद्ध सभ्यता का एक कृषि उत्सव है। इसे पाली साहित्य में वप्पमंगल उत्सव कहा गया है। वर्ष की पहली फसल लेने के लिए खेतों को तैयार करने के लिए पहला हल इस दिन चलाऐं जाने की प्राचीन परंपरा है। हमारे पुरखों ने इसके लिए एक दिवस तय किया था उसे ही अखाजी कहते है|
तथागत बुद्ध के पिता शुद्धोदन अपने पांचसौ हलों के साथ यह उत्सव मनाते थे और राजा होने के नाते पहला हल चलाकर इस कृषि उत्सव का शुभारंभ करते थे| तथागत बुद्ध अपने बचपन में जब इस उत्सव के दिन जम्बूवृक्ष के नीचे बैठे थे, तो एकांत में उन्हें ध्यान का पहला चरम प्राप्त हुआ था, जिसका उपयोग उन्होंने बोधगया में पिपल वृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्ति के लिए हुआ था|
इसलिए, बौद्ध धर्म में यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है| तथागत बुद्ध को कभी न मिटने वाला "अक्षय त्रिविध ज्ञान" प्राप्त करने में वप्पमंगल उत्सव महत्वपूर्ण था| यही कारण है कि, बौद्ध लोग आज भी वप्पमंगल उत्सव को अक्षय तृतीया या अखाजी के रूप में मनाते है| परशुराम एक काल्पनिक पात्र है और वप्पमंगल बौद्ध उत्सव का ब्राम्हणीकरण करने के लिए इस पात्र को इस उत्सव के साथ अक्षय तृतीया के नाम से जोडा गया है| काल्पनिक कथाओं के खारिज हो जानेपर पता चलता है कि, अक्षय तृतीया या अखाजी वास्तव में वप्पमंगल बौद्ध उत्सव ही है|
-- डा. प्रताप चाटसे, बुद्धिस्ट इंटरनेशनल नेटवर्क
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